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लेखनी कहानी -12-Nov-2022 न्याय

आक्रोश से देश उबल रहा था । "ये न्याय नहीं अन्याय है" लोग कह रहे थे । उस बेचारी कन्या का क्या कसूर था ? आखिर तीन तीन दरिंदों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था उसके साथ । केवल दुष्कर्म ही नहीं किया "हैवानियत की पराकाष्ठा" की गई थी । उसके निजी अंगों में दारू की बोतल ठूंस दी गई और चेहरा तेजाब से जला दिया गया । फिर भी उन तीनों हैवानों को बरी कर दिया गया ? जनता में बहुत नाराजगी थी । "अगर ये न्याय है तो अन्याय क्या है" ? हर एक व्यक्ति के मुंह पर ये प्रश्न था । यदि इसी तरह न्याय होता रहेगा तो स्त्री कहां जायेगी ? 


पुनर्विचार याचिका लगा दी गई । पहला प्रश्न था कि क्या यह याचिका सुनवाई के योग्य है ? विद्वान न्यायाधीशों ने इस पर विचार किया । वकीलों ने बहस की । सबके अपने अपने तर्क थे । कानून की व्याख्या अपने अपने मत के अनुसार की जाने लगी । जनता के आक्रोश को देखकर उस पुनर्विचार याचिका को सुनवाई के योग्य माना गया और उसे सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया गया । 


जैसा कि आमतौर पर होता है, जनता धीरे धीरे भूल जाती है और अपने काम धंधों में व्यस्त हो जाती है । इस प्रकरण में भी ऐसा ही हुआ । सुनवाई टलती रही । "कन्या" के परिजन न्याय की गुहार लगाते रहे । 


आखिर में वह दिन भी आया जब सुनवाई पूरी हो गई । तीन न्यायाधीशों की पीठ में इस याचिका पर विचार विमर्श हुआ । एक न्यायाधीश कहने लगे "न्याय का यह मूलभूत सिद्धांत है कि चाहे लाख अपराधी छूट जायें मगर एक निर्दोष व्यक्ति को सजा नहीं होनी चाहिए । साथ ही यह भी कि अपराध पूरी तरह से सिद्ध होना चाहिए । अगर संशय है या पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं तो संदेह का लाभ आरोपी को दिया जाना चाहिए । इस प्रकरण में यही हुआ है । आरोप निर्विवाद रूप से प्रमाणित नहीं हैं इसलिए जो निर्णय पहले सुनाया गया था वह एकदम सही है" । 


दूसरे न्यायाधीश कहने लगे "न्याय करते समय केवल एक सिद्धांत के आधार पर निर्णय नहीं किया जाना चाहिए । न्याय का तो एक सिद्धांत यह भी है कि न्याय न केवल होना चाहिए अपितु दिखना भी चाहिए । क्या इस प्रकरण में न्याय दिखा ? एक मासूम बच्ची दुर्दांत हैवानों के पागलपन का शिकार हुई । उसका क्या कसूर था ? यही कि वह स्त्री प्रजाति है ? उसके साथ सदियों से अमानवीयता होती आई है तो आगे भी होती रहनी चाहिए ? अगर इन दुर्दांत अपराधियों ने यह दुष्कृत्य नहीं किया तो फिर किसने किया ? या उस बच्ची ने स्वयं ही अपना बलात्कार कर लिया और स्वयं ने ही तेजाब से अपना चेहरा झुलसाकर आत्महत्या कर ली" ? 


तीसरे और सबसे सीनियर न्यायाधीश कहने लगे "माना कि यह सही है कि आरोप पूरी तरह सिद्ध होने चाहिए लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि शातिर अपराधी अपराध करने के उपरांत समस्त साक्ष्य नष्ट कर देते हैं । ऐसी अवस्था में आरोप सिद्ध करना बहुत मुश्किल होता है । और दुष्कर्म के उन प्रकरणों में जिनमें कन्या की हत्या कर दी गई हो, कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं होता है । इसलिए परिस्थित जन्य साक्ष्यों के आधार पर ही निर्णय किये जाते हैं । अगर इसी तरह से अपराधी छूटते रहेंगे तो समाज में न्याय के बजाय अन्याय का बोलबाला हो जायेगा । अपराधियों का साम्राज्य स्थापित हो जायेगा और गरीब , पीड़ित पक्ष का जीना दुर्लभ हो जायेगा । हो सकता है कुछ प्रकरणों में जांच अधिकारी द्वारा जाने अनजाने में जांच में खामियां रह गई हों पर इसका मतलब यह तो नहीं कि अपराधियों को खुला छोड़ दिया जाये ? इसमें पीड़िता का क्या दोष ? न्याय के लिए कभी कभी असामान्य निर्णय भी किये जाते हैं । हम लोग जो निर्णय सुनाते हैं उनसे समाज में एक संदेश भी जाता है । हमारे निर्णयों से समाज में ऐसा कोई संदेश नहीं जाना चाहिए कि पीड़िताओं का कोई धणी धोरी नहीं है । न्यायपालिका पीड़ितों की संरक्षिका है और अपराधों के प्रति बहुत संवेदनशील और कठोर है । अगर इस प्रकार का संदेश नहीं जायेगा तो अपराधियों के हौंसले और भी बुलंद हो जायेंगे । अब आप ही तय कर लें कि हमें क्या करना चाहिए" । 


और सर्वसम्मति से तीनों को फांसी का आदेश दे दिया गया । 


श्री हरि 



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9 Comments

madhura

23-Jul-2023 09:44 AM

Nice

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kashish

23-Jul-2023 09:16 AM

Very nice

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Babita patel

07-Jul-2023 11:39 AM

Very beautiful story

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Hari Shanker Goyal "Hari"

07-Jul-2023 07:10 PM

🙏🙏

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